~~"नादान परिंदे।"~~ कुछ इल्म की बात करते हैं, एक इंद्रजाल की बुनाई करते हैं। दूर इस शहर की दौड़ धूप से, कुछ लोगों की बात करते हैं। .. जिनसे ना मेरा कोई नाता है, और शायद न ही तुम्हारा। पर वे जितने तुम्हें अपने से लगते हैं, शायद उसे ज़्यादा नहीं तो कुछ कम भी नहीं, वे मेरे भी उतने ही अपने हैं! .. जिनके होने का एहसास तुम्हें भी है, और शायद मुझे भी है, एक चिट्ठी आई है, उन अपनों के गाँव से। .. आओ, तुम्हें सुनाता हूं-: .. ~~ वैसे तो कोई खास बात नहीं है, बस यूं ही यह चिट्ठी लिख रहा हूं, महामारी के चलते इस दौर में, इंसानों के बीच किसी अपने को ढूंढ रहा हूं। .. चला गया था कुछ दूर मुझसे , यह बात कुछ साल पुरानी है। शहर की इस दौड़ धूप के बीच मैंने भी अपनी एक शाखा गंवाई है। .. अब खोज रहा हूं, इस शहर की भीड़ में अपने से अलग हुई शाखा को। सींचा है जिसे बचपन में , अपने लहु और पसीने से, अब उसी शाखा की अपने कर्त्तव्य को पूरा करने की रात आई है। .. क्यों जनाब, यह इतनी भी क्या रुसवाई है...