"बयान"
वैसे तो बेरुखी इस कदर है कि नाम सुनते ही जी कतराता है,
पर फिर भी सुना है कुछ बदल से गए हो।
अच्छा लगा जान कर अब डरते नहीं हो तुम!
"ان دو سا شور"
कुछ बातें थी
जो ज़ुबान पर आने को है,
सोचा अभी यह गलती मान लूँ ,
क्या मालूम ना जाने कब यल ख्याल ओझल हो जाँए?
क्या मालूम था मुझे दाग चाँद पर भी है,
जो वे तुमसे थे अब मेरे भी हैं,
अच्छा लगा जान कर कि खोट
मेरी तरह तुम में भी हैं।
सुना है यह खोट हर इंसान की फितरत में हैं।
कुछ दिनों से कहने का सोच रहा था-:
आईने से दाग मिटाते-मिटाते यूँ संभल गया हूँ ,
इतना तो मन को फूसला बहला लिया है,
यह दाग बस एक गलती ही तो है।
इस गलती को भूलने की कोशिश कर रहा हूँ!
कही दूर इस सोच के दलदल में आज मैं फसाँ हूँ,
पूराने किस्सों को याद कर मैं खूद से लड़ा हूँ।
अगर ऐसा ना होता,
अगर वैसा ना होता,
काश वो पल ही मुझसे रूठ गया होता।
मन मंथन वहीं थम सा गया होता,
यूँ न मैं अपने अस्तित्व को खोज रहा होता।
इस छोटे शहर की अनजान सड़क पर,
पूरानी यादों के इस छोर पर,
मिला था पूराना दोस्त आज मुझे,
अन्य लोगों की तरह, मुझे
कुछ साल पहले गलती का पाठ पढ़ाया था जिसने,
"गलती करना तो इंसान की फितरत है",
लेकिन शायद गलती करके उसे भूलने
का पाठ नहीं बताया था जिसने,
चलते चलते आज वक्त का मारा,
अचिम्भत कर फिर उसने एक वाक्य दोहराया
"जनाब, मन को बहलाने का ख्याल अच्छा है!"
जनाब, मन को बहलाने का ख्याल अच्छा है
कम न तो आप हो, न वो है;
बस यह आप का दिल है जो समझ न पाया,
जिसे आप अक्सर चाँद में ढूँढते रहते हो,
उसका अस्तित्व आपका दिल न आँक पाया।
"मन बहलाने का ख्याल अच्छा है,
बस मन मंथन यूँ ही जारी है।
-EtchedMirage writes✍
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